हिजाब मुद्दे पर आयशा नूर का सवालः क्या कोई भी धर्म महिलाओं को अपना शरीर दुनिया को दिखाने की इजाजत देता है

कोलकाताः हिजाब पर कर्नाटक की बीजेपी सरकार और हिंदुत्ववादी संगठनों के हमले ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. आरएसएस समर्थक हिंदुत्ववादी संगठन हिजाब पर पाबंदी लगाने की मांग कर रहे हैं. वहीं देश में ऐसे लोगों की भी तादाद कम नहीं है, जो बीजेपी की इस हरकत की निंदा कर रहे हैं. इन सबके बीच कराटे विश्व चैंपियन आयशा नूर ने यह सवाल किया है कि क्या कोई भी धर्म महिलाओं को अपना शरीर दुनिया को दिखाने की इजाजत देता है.

अमेरिकी सरकार द्वारा हीरो ऑफ जेंडर इक्वालिटी पुरस्कार से सम्मानित आयशा नूर ने कहा कि मिशनरीज स्कूलों में पढ़ाने वाली ज्यादातर शिक्षिकाएं इसाई धर्म की होती हैं और वो भी सर पर स्कार्फ (हिजाब) पहन कर बच्चों को पढ़ाती हैं. फिर कोई क्यों यह आवाज नहीं उठाता है कि हमें सर पर स्कार्फ बांधने वाली शिक्षिका से पढ़ाई नहीं करनी है.

आयशा नूर ने कहा कि दुनिया का हर धर्म महिलाओं को यह शिक्षा देता है कि वो अपने शरीर को अच्छी तरह से ढंक कर रहें. हिंदू धर्म हो या फिर सिख या इसाई धर्म, दुनिया के हर धर्म में महिलाओं को सर ढांकने का पाठ दिया गया है. इसलिए भारत में हिंदू धर्म की महिलाएं अपने सर पर आंचल डालती हैं. कुछ मुसलमान महिलाएं बुर्का पहनती हैं तो कुछ हिजाब पहनना पसंद करती हैं. सिख महिलाएं भी अपने सर पर दोपट्टा डालती हैं. इसमें किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

लाखों लड़कियों की आइकन आयशा नूर ने बच्चियों और महिलाओं को संदेश देते हुए कहा है कि वो किसी तरह के दबाव में न आयें. भारत के संविधान ने हर किसी को अपनी पसंद का कपड़ा पहनने का अधिकार दिया है. इसलिए महिलाएं वही पहनें, जो उन्हें पसंद है. किसी के दबाव में आ कर अपना पहनावा न बदलें. मुस्लिम लड़कियां हिजाब अपनी मर्जी से पहनती हैं. वो किसी के दबाव में हिजाब नहीं पहनती हैं. इसलिए उन्हें हिजाब पहनने से रोकना गैरकानूनी और असंवैधानिक है.

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