एक हाथ और पांव से वंचित, फिर भी कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल करने का है जुनून

कोलकाताः किसी ने सच ही कहा है कि अगर इरादा पुख्ता हो तो कोई भी बाधा जिंदगी में आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है. इसकी मिसाल हैं आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिला के जॉन बाबू. 18 वर्षीय जॉन बाबू का एक हाथ और एक पांव नहीं है. इसके बावजूद वो न सिर्फ कराटे सिख रहे हैं, बल्कि उनकी ख्वाहिश कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल करना है.

ब्राउन बेल्ट धारक जॉन बाबू विभिन्न राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में कई मेडल जीत चुके हैं. इसके बावजूद उन्हें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है.

जॉन बाबू के कोच के. श्रीनिवास भी शारीरीक रुप से विक्लांग हैं. इसके बावजूद वो 30 साल से बच्चों और नौजवानों को कराटे सिखा रहे हैं. सरकारी उदासीनता से वो भी काफी परेशान हैं. इतने वर्षों में सैकड़ों लोगों को कराटे सिखाने वाले श्रीनिवास को आजतक सरकार से किसी तरह की मदद नहीं मिली है.

यह कहानी सिर्फ जॉन बाबू या श्रीनिवास की नहीं है. सरकारी उदासीनता की शिकार कोलकाता की कराटे खिलाड़ी आयशा नूर भी हैं. आयशा नूर अब तक विदेशों में देश के लिए तीन स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने ट्वीट कर उनकी प्रतिभा और जज्बे की तारीफ की थी.

आयशा नूर एक अनाथ बच्ची हैं. वो मिर्गी के रोग से ग्रस्त हैं. शारीरीक और आर्थिक रुप से कमजोर होने के बावजूद उन्होंने कराटे में एक मकाम हासिल किया है. वो लाखों लड़कियों की प्रेरणा है. आज आयशा न सिर्फ कराटे में देश का नाम रौशन कर रही हैं, बल्कि वो हजारों लड़कियों को मुफ्त में कराटे की ट्रेनिंग भी दे रही हैं.

आयशा नूर की शोहरत विदेशों तक जा पहुंची है. अमेरिकी सरकार ने उन्हें हीरो ऑफ जेनडर इक्वालिटी अवार्ड से सम्मानित किया है. टाइम्स ऑफ इंडिया, जी न्यूज, टीवी 9 भारतवर्ष जैसे देश के प्रतिष्ठित मीडिया ने उन्हें सम्मानित किया है. लेकिन मोदी सरकार ने आजतक आयशा की कोई मदद नहीं की. पिछली बार थाईलैंड में आयोजित विश्व मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए उन्हें लोगों के सामने हाथ तक फैलाना पड़ा था. लोगों की मदद से उन्होंने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और स्वर्ण पदक जीता. लेकिन सरकार ने उन्हें कोई मदद नहीं की.

आयशा नूर के कोच पूर्व चैंपियन एमए अली ने कहा कि भले ही फुल कांटेक्ट कराटे को मान्यता नहीं मिली है, लेकिन यह भी तो एक खेल है. विदेशों में कराटे खिलाड़ियों को सरकार हर तरह की मदद करती है, लेकिन हमारी सरकार कभी भी मदद के लिए आगे नहीं आती है. एमए अली ने कहा कि देश के लिए तीन स्वर्ण पदक जीतने के बावजूद आयशा नूर को मोदी सरकार ने आजतक एक चॉकलेट तक नहीं दिया है.

शायद आयशा नूर और जॉन बाबू जैसे नौजवान कराटे खिलाड़ी अल्पसंख्यक होने की सजा भुगत हैं.

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