चाय वाले का बेटा वर्ल्ड चैंपियनशिप में करेगा भारत का प्रतिनिधित्व: फिर भी कहीं से नहीं मिल रही है मदद, बेटे को प्रतियोगिता में भेजने के लिए बाप ने लिया बैंक से कर्ज
कोलकाता: एक चाय वाला अपनी मेहनत के बल पर देश का प्रधानमंत्री बन गया है, लेकिन हर चाय वाला उनकी तरह खुशकिस्मत नहीं होता है। दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल में एक चाय वाले को अपने बेटे को कराटे वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए भेजने के वास्ते कर्ज लेना पड़ा है।
अमजद मोल्ला पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के चंपाहाटी इलाके के एक गांव में रहते हैं। बेहद गरीब हैं। उनके भाई की चंपाहाटी स्टेशन के बाहर चाय की दुकान है, जिसमें वो काम करते हैं। अमजद अली मोल्ला का छोटा बेटा सूरज मोल्ला कक्षा छह में पड़ता है। उसे कराटे सीखने का शौक है। सूरज बड़ा हो कर पुलिस अफसर बनना चाहता है। वो पिछले कई साल से कराटे सीख रहा है। इस दौरान उसने कई प्रतियोगिता भी जीती है। सूरज की प्रतिभा को देखते हुए उसका चयन कराटे वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने वाली 26 सदस्यीय भारतीय टीम में हुआ है।
कराटे वर्ल्ड चैंपियनशिप 20 सितंबर को थाईलैंड की राजधानी बैंगकॉक में होने वाला है। सभी खिलाड़ियों की तैयारी जोरों पर है। लेकिन सूरज के लिए बैंगकॉक जाना इतना आसान नहीं है। कई प्रतियोगिता जीतने के बावजूद सूरज को आजतक कहीं से कोई मदद नहीं मिली है। केंद्र और राज्य सरकारें खेलों के विकास पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं, लेकिन फुल कॉन्टैक्ट कराटे के लिए सरकार एक पैसे भी नहीं देती है। जिसके चलते सूरज जैसे प्रतिभावान खिलाड़ियों को मदद के लिए ठोकरें खानी पड़ी है।
भारतीय टीम में सूरज का चयन होने पर अमजद मोल्ला के गांव के लोग बेहद खुश हुए थे, उन्होंने अमजद को मदद करने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन जब मदद का वक्त आया तो सभी ने मुंह मोड़ लिया।
अमजद मोल्ला का कहना है कि मैं बड़ी मुश्किल से सूरज की ट्रेनिंग और खाने पीने का इंतजाम करता हूं। मैं चाय की दुकान में काम करता हूं। पहले से ही कर्ज में डूबा हुआ हूं। मैं बीमार भी हूं। ऐसे में सूरज को बैंगकॉक भेजना मेरे लिए मुमकिन नहीं है। जिन लोगों ने मदद का वादा किया था, वो अब मेरा फ़ोन भी रिसीव नहीं करते हैं। लेकिन बेटे की मेहनत, लगन और उसके भविष्य को देखते हुए मैं चाहता हूं कि वो वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग ले। इसके लिए मैंने एक प्राइवेट संस्था से कर्ज लिया है। मुझे पता नहीं है कि मैं ये कर्ज कैसे चुकाऊंगा, लेकिन बेटे के भविष्य के लिए ये जोखिम उठा लिया है। मेरी बस यही ख्वाहिश है कि एक चाय वाले का बेटा भी कराटे वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करे और अपने देश के लिए स्वर्ण पदक जीते।